वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
कवि - सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
https://www.youtube.com/watch?v=PvEzwETM3sE
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http://en.wikipedia.org/wiki/Suryakant_Tripathi_%27Nirala%27
http://kavita-hindi.blogspot.in/2009/10/by-suryakant-tripathi-nirala-one-of.html
http://ramachandraguha.in/archives/nehru-and-nirala-the-hindu.html
http://archive.org/search.php?query=Suryakant%20Tripathi%20nirala
yours devotionally,
lsnbsquare-motherindia.
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